लेबर वेलफेयर फाउंडेशन का खुलासा:भ्रष्टाचार की काली कमाई से खड़ा हुआ संपत्ति का साम्राज्य

 

नई दिल्ली: कनॉट प्लेस के कांस्टीट्यूशन क्लब में आज लेबर वेलफेयर फाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, एडवोकेट सुनील गुप्ता ने भ्रष्टाचार से संबंधित कई चौंकाने वाले खुलासे किए। सुनील गुप्ता ने वर्तमान और पूर्व सरकारों पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की कि वे इस मामले को गंभीरता से लें और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए उचित कदम उठाएं।    
  सुनील गुप्ता का आरोप किसी एक सरकार पर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर है। उनका कहना है कि जिस तरह से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, उससे देश और प्रदेश के विकास में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने उत्तराखंड पावर लिमिटेड (UPCL) के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल कुमार पर सवाल उठाते हुए कहा कि कैसे कम समय में इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया गया। इसके पीछे के कारणों की जांच होनी चाहिए।

देश और प्रदेश के विकास और प्रगति में भ्रष्टाचार और घोटालों की काली कमाई का नकारात्मक प्रभाव दिखाने वाला ज्वलंत उदाहरण उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPCL) में देखने को मिलता है। जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों ने नियमों का उल्लंघन कर धोखेबाजी और छल से पदों को हथियाया है। एमडी और निदेशक (परियोजना) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे ये अधिकारी करोड़ों के घोटालों में संलिप्त पाए गए हैं। शासन स्तर से जांचोपरांत दंडात्मक कार्यवाही लंबित है, जिससे इनकी ताकत और प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। विकास में बाधक और भ्रष्टाचार की काली कमाई से बने 50 से अधिक नामी-बेनामी संपत्तियों का विशाल साम्राज्य हैरतअंगेज है। विभिन्न नामों से खरीदी गई इन संपत्तियों में कई अवैध गतिविधियाँ छिपी हुई हैं।

भ्रष्टाचार की काली कमाई से संपत्तियों का साम्राज्य:                                                                                                                        सुनील गुप्ता ने खुलासा किया कि UPCL के वर्तमान एमडी अनिल कुमार ने 1987-88 में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में सहायक अभियंता के पद से अपनी सरकारी सेवा की शुरुआत की। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से उन्होंने UPCL और पिटकुल में विभिन्न उच्च पदों पर काम किया और अब वे सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उन्होंने बताया कि अनिल कुमार की लगभग डेढ़ सौ करोड़ की संपत्तियाँ हैं, जबकि उनके वेतन और बचत को ध्यान में रखते हुए यह संपत्ति चार से पांच करोड़ से अधिक नहीं हो सकती। उन्होंने अपने सहयोगी अजय अग्रवाल के साथ मिलकर लगभग 200 करोड़ की संपत्तियाँ जुटाई हैं। इन संपत्तियों में परिजनों के नामों का मनमाने ढंग से उपयोग किया गया है और काली कमाई को विभिन्न व्यवसायों में निवेश कर एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया गया है।

 प्रमुख आरोप:

- पीएसडीएफ और एडीबी फंडिंग वाली परियोजनाओं में टेंडर पूलिंग और सांठगांठ करके घोटाले और भ्रष्टाचार।

- कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का मनमाने ढंग से वेवऑफ करना।

- दूरस्थ स्थानों पर एक ही दिन में असंभव निरीक्षण करना।

- निदेशक (परियोजना) के साथ धमकी और अभद्रता करना और महिला सहकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करना।

- वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों द्वारा जांच की सिफारिशों को नजरअंदाज करना।

- अधूरी एसीआर और नियुक्ति की शर्तें पूरी किए बिना एमडी का पद हथियाना।

- दोस्ती के कारण दागी व्यक्ति को निदेशक (परियोजना) नियुक्त करना।

- यूपीसीएल के चर्चित पावर परचेज प्रकरण पर पूर्व सीएम के एफआईआर के आदेशों की अनदेखी करना।

- यूपीसीएल के सैकड़ों करोड़ के पीर पंजाल और फैब्रिक कॉन्ट्रैक्टर के साथ सौदेबाजी।

संपत्ति के मामले:                                                                                      अनिल कुमार ने अपनी संपत्तियों की घोषणा में झूठ बोलकर देहरादून की मात्र चार और लखनऊ की तीन संपत्तियों का ही उल्लेख किया, जबकि वे देहरादून में लगभग 35-40 नामी-बेनामी संपत्तियाँ खरीद चुके थे। उनके सहयोगी अजय अग्रवाल ने भी लगभग 15-20 संपत्तियाँ खरीदी थीं। उन्होंने अपने बेटे यशराज के नाम पर ऋषिकेश और देहरादून में लाखों रुपये प्रतिमाह की लीज पर कई बड़े-बड़े ब्रांडेड शोरूम्स लिए। यशराज वर्ष 2015-16 में पिटकुल के एक कॉन्ट्रैक्टर कंपनी मैसर्स आशीष ट्रांसपावर में नौकरी कर रहा था और 40-45 हजार रुपये की सैलरी प्राप्त कर रहा था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने देहरादून की महंगी कालोनी पनाष वैली में लाखों और करोड़ों रुपये के लक्जरी फ्लैट भी अपने दामादों और रिश्तेदारों के नाम पर खरीदे हैं। इन अधिकारियों ने ईडी और आयकर विभाग को धोखा देने के लिए अपने पते और रिश्तों के बारे में झूठी जानकारी दी है। उन्होंने अपने आपको और बेटियों को जौनपुर का निवासी बताया और पत्नी को ससुर की पुत्री दिखाकर अनेकों बेशकीमती संपत्तियों का कारोबार किया।

 

 अन्य घोटाले:

- पिटकुल की पीएसडीएफ और एडीबी फंडिंग वाली परियोजनाओं में टेंडर पूलिंग और सांठगांठ करके महाघोटाले और भ्रष्टाचार किए गए।

- कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का मनमाने ढंग से वेवऑफ किया गया।

- एक ही दिन में दूरस्थ स्थानों पर असंभव निरीक्षण किए गए।

- निदेशक (परियोजना) के साथ धमकी और अभद्रता की गई।

- महिला सहकर्मी के साथ आचरणहीनता में दोषी पाए जाने की जांच को कूड़ेदान में फेंक दिया गया।

- वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों द्वारा बिठाई गई चार गंभीर प्रकरणों की खुली जांच को बंद करा दिया गया।

- दर्जनों घोटालों में संलिप्तता के बाद भी पिटकुल का निदेशक और तत्पश्चात यूपीसीएल का एमडी बन बैठा।

- अधूरी एसीआर और नियुक्ति की शर्तें पूरी किए बिना ही एमडी की कुर्सी हथिया ली।

- दोस्ती के कारण दागी व्यक्ति को निदेशक (परियोजना) नियुक्त कराया।

- यूपीसीएल के चर्चित पावर परचेज प्रकरण पर पूर्व सीएम के एफआईआर के आदेशों की अनदेखी की गई।

- यूपीसीएल के सैकड़ों करोड़ के पीर पंजाल और फैब्रिक कॉन्ट्रैक्टर के साथ सौदेबाजी होने पर उन्हीं कामों को स्क्रैप कर टुकड़ों में टेंडर अवार्ड किए गए।

- यूपीसीएल ने जल विद्युत निगम के साथ मिलकर महंगी बिजली खरीद थोपने का खेल खेला।

- सेवानिवृत्ति और एमडी का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सेवा विस्तार की ललक दिखाई गई।

निष्कर्ष:                                                                                             लेबर वेलफेयर फाउंडेशन ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा करके एक महत्वपूर्ण मुद्दे को सामने लाया है। यह स्पष्ट है कि यूपीसीएल में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं और इसे खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए उचित उपाय करने चाहिए।

 

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